Now, I have earlier remarked that BA, is one from my list of three favorite singers. She had pioneered the "semi-classical-ization" of the ghazals in our country. The album is unique in the sense that every ghazal is preceded by a short dialog by the 'Mallika-e-Ghazal'.
Below is ghazal that was all over me today, and a down-sampled version of the same.
ख़ुदा के वास्ते आ बेरुख़ी से काम न ले,
तड़प के फिर कोई दामन को तेरे थाम न ले|
बस एक सज्दा-ऐ-शुकराना पा-ऐ-नाज़ुक पर,
ये मैकदा है यहाँ पर ख़ुदा का नाम न ले|
ज़माने भर में हैं चर्चे मेरी तबाही के,
मैं डर रहा हूँ कहीं कोई तेरा नाम न ले|
मिटा दो शौक़ से मुझको मगर कहीं तुमसे,
ज़माना मेरी तबाही का इंतकाम न ले|
जिसे तू देख ले इक बार मस्त नज़रों से,
वो उम्र भर कभी हाथों में अपने जाम न ले|
रखूँ उम्मीद-ऐ-करम उससे अब मैं क्या 'साहिर',
की जब नज़र से भी ज़ालिम मेरा सलाम न ले|
-- साहिर भोपाली
|
No comments:
Post a Comment